परिवार सहायता कोश योजना
संघ के सदस्यों की सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को आर्थिक संरक्षण देने
के उद्देश्य से डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ, सा.नि.वि. ने भी वर्ष 1981 में श्री जे.एन.
श्रीवास्तव की अध्यक्षता में इं. कपिलदेव द्विवेदी की मंत्री परिषद ने एक
क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए परिवार सहायता कोश की स्थापना करने का निष्चय किया।
संघ के 50 वें महाधिवेषन में उक्त आषय हेतु संविधान भी पारित कया गया। इस संविधान
को मूर्तरूप देने, पारित कराने एवं क्रियान्वित कराने का दायित्व लिया गया था-इं.
राजेन्द्र नाथ दीक्षित एवं इं. आर.एल.बाजपेयी ने और सफलतापूर्वक अपना दायित्व निभाया
भी। उ.प्र. रजिस्ट्रार आफ सोसाइटीज द्वारा दिनांक 14.3.83 को क्रमांक 3415 द्वारा
यह संविधान पंजीकृत किया गया। संविधान के अनुसार डिप्लोमा इंजी. संघ सा.नि.वि. के
आजीवन सदस्य ही इसके सदस्य बन सकते है। यथा प्रारम्भ में केवल 500 रूपये इस कोश में
जमा करने होंगें। इस धन पर कोई ब्याज देय नहीं है। इसके अतिरिक्त विषेश अनुदान एवं
प्रवेश ष्षुल्क के रूप में रूपये 11 की राषि और जमा करानी थी परन्तु परिवार सहायता
कोश में वास्तविक मूलधन रूपये 500/- ही माना गया। यह राषि कम से कम 5 वर्शो के लिए
संघ के कोश में स्थायी रूप से जमा रखना अनिवार्य है। इस योजना के एक हजार सदस्य पूरे
होने पर ही यह लागू मानी जायेगी तथा सम्बन्धित सदस्य इस कोश से सहायता प्राप्त करने
का अधिकारी सदस्यता ग्रहण करने की तिथि के एक वर्श पष्चात ही हो सकेगा। सदस्य की
मृत्यु या स्थायी रूप से विकलांग होकर सेवा के अनुपयुक्त पाये जाने की स्थिति में
एक सप्ताह के अन्दर प्रथम किस्त के रूप में रूपये 5000/-प्रदान किये जायेंगे। दूसरी
एवं अन्तिम किष्त रूपये 15,000/- की 4 माह बाद देय होगी। इस प्रकार कुल लाभ रूपये
20,000/-को होगा।
संविधान बनते ही 10.12.82 को श्रीरामलखन बाजपेयी जू.इं. इसके प्रथम सदस्य बने।षुरू
में सदस्य बनने की गति बहुत धीमी रही। वर्श 81 से 27 मई 84 तक मात्र 442 सदस्य बने
थे। वास्तव में यह चिन्ताजनक स्थिति थी। इस 442 सदस्यों का भविश्य भी अन्धकार में
था क्योकि संविधान की धारा 14 उपधारा 5 के अनुसार एक हजार सदस्य बनने पर ही यह योजना
लागू मानी जा सकती थी और कुछ हुआ भी ऐसा ही। एक हजार सदस्य बनने से पहले ही श्रीराम
कीर्तिराम, श्री षिववीर सिंह एवं श्री रामप्यारे सिंह हमसे बिछुड़ गय। यद्यपि
संविधान की धारा 14 उपधारा 5 के अनुसार वे तीनों सदस्य इस कोश से कोई सहायता
प्राप्त करते के अधिकारी नहीं थें, फिर भी इस उपधारा के द्वितीय अंश में प्रदत्त
विषेश अधिकारों का उपयोग करते हुए व्यवस्थापन समिति ने उपरोक्त सदस्यों में से
प्रत्येक को रूपये 1500/-आर्थिक सहायता प्रदान कराई। क्या अन्य कोई बीमा एजेन्सी इस
प्रकार आर्थिक सहायताप्राप्त कराने में आपके परिवार को सहयोग दे सकती है ? सदस्यता
ग्रहण करने की धीमी गति से चिन्तित होकर संघ के तत्कालीन महामंत्री इं. के.एम. लाल
ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। सितम्बर 84 में उन्होंने एक समय का अन्न त्याग कर दिया
और घोषणा की कि जब तक एक हाजर सदस्य पूरे नहीं होगें, केवले एक समय ही भोजन करेंगे।
उनकी यह तपस्या रंग लायी और नौ माह अर्थात 17 मई 84 तक एक हजार सदस्य पूरे हो गये।
एक हजारवें सदस्य बने इं. रामकुमार गुप्ता और फिर यह योजना अबाध गति से चलने लगी।
कहॉ तो पौने चार साल में 442 सदस्य बने थे ओर कहॉ मात्र एक वर्श की अवधिमें 558
सदस्य। वास्तव में इस योजना को गति प्रदान करने का श्रेय इं.के.एम.लाल को नर देना
कृतध्नता होगी, साथ ही अन्याय भी।
इस योजना की लोकप्रियता एवं महत्व को सदस्यों ने धीरे-धीरे समझा। पुनः 7.4.1989 को
इं. के.के. गोयल के महामंत्रित्व काल में इस योजना का दूसरा चरण प्रारम्भ हुआ। इस
चरण के पहले सदस्य बने श्री कपिल देव द्विवेदी। तब तक प्रथम चरण के 2327 सदस्य बन
चुके थे। इस चरण में भी पहले ही चालू प्रथम चरण की सभी ष्षर्तो एवं लाभ को अनुमन्य
किया गया। केवल 1000सदस्य के स्थान पर 1500 सदस्य बनने पर लाभ देने की घोश्षणा की
गई। द्वितीय चरण के 1500 वें सदस्य बनें सच्चिदानन्द राय। दि. 23.01.1996 से इस चरण
का लाभ भी मिलना ष्षुरू हो गया। सदस्यों की बढ़ती मांग को देखते हुए, इं. वी.एन.सिंह
के महामंत्रित्व काल में दि. 26.02.96 से तृतीय चरण भी प्रारम्भ कर दिया गया हैं इसे
पहले सदस्य बने इं.देषपाल सिंह पंवार तत्कालीन अध्यक्ष। दिसम्बर 2008 तक इस योजना
की स्थिति इस प्रकार रही।
प्रथम चरण में कुल 4074,द्वितीय चरण में कुल 2261 तथा तीसरे चरण में 910 सदस्य बने
है। प्रत्येक चरण हेतु पूर्ण लाभ 20,000/-है।
इधर मानसिक तनाव,कार्य का अधिक बोझ, दुर्घटनाओं में वृद्धि तथा जीवन की लम्बी
भागदौड़ के कारण सदस्यों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।जब इस योजना के प्रारम्भ
किया गया था उसे समय 2 सदस्य प्रति हजार की दर से मृत्यु का आधार मानकर गणना की गई
थी। परन्तु विगत 5 वर्शाे में यह मृत्यु दर लगभग दो गुनी हो चुकी है, परिणामस्वरूप
सदस्यों द्वारा इस योजना के तहत जमा किया गया मूलधन के ब्याज से इसका पूरा लाभ देने
के कारण यह योजना घाटे में आ गई। स्वाभाविक ही है कि मूल राषि और बढ़ानी पड़ी।वैसे भी
50 वर्श्श से अधिक आयु वालों की मृत्यु दर और भी अधिक होती है। इन्ही सब परिस्थितियों
को मद्दे नजर रखते हुए इस योजना की राषि में बढ़ोत्तरी करनी पड़ी। इस योजना की समिति
की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार दि.01.5.96 से इसकी सदस्यता राषि संषोधित की
गयी।
40 वर्श की आयु तक-रूपये 750/- प्रत्येक चरण के लिए,40 वर्श से 50 वर्श्श आयु तक -रूपये
10,000/-प्रत्येक चरण के लिए, 50 वर्श से ऊपर आयु वाले-रूपये 1500/-प्रत्येक चरण के
लिए। परन्तु जनवरी 2006 से इसकी सदस्यता ष्षुल्क प्रत्येक चरण हेतु रूपये 2075/-कर
दिया गया। बैंक से मूलधन पर प्राप्त होने वाले ब्याज को दरों में कमी होना भी
शुल्क वृद्धि का एक कारण बना।
इस योजना को सफल बनाना है तो युवा वर्ग को सामने आना होगा क्योकि परिपक्व अवस्था
वाले अधिकतर यह योजना ग्रहण कर चुके हैं।
यह योजना आपके लिए, आपके द्वारा संचालित, आपकी ही है। जीवन क्षणभंगुर है। कब यह
जीवन दीप बुझा जाए, किसी को नही पता। परन्तु अचानक इहलीला समाप्त होने पर जरा कल्पना
कीजिए कि आपके परिवार का क्या होगा ? आपके पुत्र की अधूरी पढ़ाई कैसे पूरी होगी ?
सोचिए, बार बार सोचिए।